Bade Bhai Sahab || Munshi Premchand || Nilesh Tasera

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मुंशी प्रेमचंद की कहानी बड़े भाई साहब अपने आप में एक सहज और सरल भाव में समाज और शिक्षा पर आलोचनात्मक नज़रिया देता है। नाटक में बड़े भाई साहब की जिम्मेदारियों के चलते छोटू के प्रति पैदा होने वाली उनकी चिंताओं को स्पष्ट दृश्य चित्र में गढ़ा गया है। कहानी से नाटक निर्माण की समूची प्रक्रिया लगभग सात से आठ माह की रही और यह प्रक्रिया नाटक के रूप में जितना बाहर प्रदर्शित होता दिख रहा है उतना ही मेरे और इस नाटक में जुटे साथियों सहयोगियों के अंतस में भी उतरा है। शिक्षा ही नहीं शिक्षा के तौर तरीक़े भी आज आज़ाद देश में किस क़दर होने चाहिए का सवाल प्रस्तुत करता है। शिक्षा आखिर करेगी क्या इस मौजू सवाल की ज़मीन पर भी नाटक बड़े भाई साहब हमें खड़ा करती है। सोचो की, जो पढ़ो उसका मतलब भी तो समझो।
इस प्रतिस्पर्धा और इस जिम्मेदारियों वाले दौर में मुंशी प्रेमचंद की कहानी बड़े भाई साहब का एक बार पुनः नाट्य रूपांतरण हुआ है वर्तमान शिक्षा का हाल समझने के लिए कि आखिर हम शिक्षा से क्या चाहते हैं और शिक्षा हमसे क्या चाहती है? आखिर हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं? ज़रा ठहरिये और सोचिये हम क्या कर रहे हैं? हमारे भीतर का कोमलपन कहाँ चला गया? नाटक ऐसे सवाल हमारे भीतर पैदा करता है।
- नीलेश तसेरा
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