filmov
tv
Bade Bhai Sahab || Munshi Premchand || Mohit Vaishnav || Best Monologue For Act
Показать описание
बड़े भाई साहब नाट्य निर्माण की प्रक्रिया का सफ़र मेरे लिए जीवन को सीखने की प्रक्रिया का एक अहम सीख है। आधुनिक मानव के अत्यंत व्यस्ततम शिक्षा प्रणाली के भँवर-जाल में मैंने अपने अंदर के छोटू को कहीं खो दिया तथा उसे फिर से तराश रहा हूँ ठीक वैसे ही जैसे प्रेमचंद की कहानी बड़े भाई साहब का नाट्य रूपांतरण कर इस कहानी को वर्तमान संदर्भों से, नए तरीको से, नए तथ्यों से जोड़ पाने का एक प्रयास रहा हूँ।
मुंशी प्रेमचंद की कहानी बड़े भाई साहब में मैं उनके बचपन की कहानी का पाते हुए नाट्यनिर्माण प्रक्रिया को अंजाम दे रह हूँ। और इस कहानी से पूर्व, मध्य और पश्चात चरण में कुछ अंश एक सघन आनुभाविक एवं यथार्थ आशावादी विचारों के साथ संयुक्त कर रहा हूँ। जो बड़े भाई साहब की सम्पूर्ण कहानी की तरह ही एक और कहानी की पूर्णता का आभास कराती है। राजकुमार रजक के मार्गदर्शन में कहानी से परे जाकर और इसके साथ जुड़ कर इस प्रक्रिया में शामिल रंग - साथियों के साथ संवाद निर्माण किए हैं। एक तिहाई से अधिक आबादी आज भी अपने बच्चे के भविष्य की संकल्पना कर लेती है और इसकी एक पारंपरिक शृंखला के साथ बच्चे शिक्षा प्रणाली में प्रवेश करते है और पारिवारिक भावी संकल्पनाएँ धीरे-धीरे बच्चों की स्वयं की संकलपना में तब्दील हो जाती है। बच्चों को भी यह महसूस होने लगता है कि यही तो है मेरे भावी भविष्य की संकल्पना है।
बचपन की रूमानियत तो यहाँ बचपन में ही खत्म हो जाती है साथ ही आने वाली उम्र भी गुम हो जाते हैं और किसी तरह एक भविष्य हाथ लग जाता है। इस पूरी यात्रा में देखेंगे की उज्जवल और भावी भविष्य के साथ बड़े भाई साहब कंधों पर तो बैठे हैं परंतु छोटू कहीं मुझसे छूट गया है। कोटा कोचिंग जो कि देश का सबसे बड़ा कोचिंग कारख़ाना है को ही देखिये देश भर से विविध छात्र –छात्राएँ यहाँ कोचिंग के लिए आते हैं, ओढ़े हुए अपने भविष्य की संकल्पना को रूपायित करने के ख्याल से जिनके कंधो पर परिवार से भेजे गए बड़े भाई साहब हर वक़्त मौजूद रहते हैं। समूचे शिक्षा व्यवस्था में खेल भी केवल एक कक्षा बन कर रह ही रह गया है और छोटू का आनंद और खेल से इनका संबंध बिछुड़ गया है।“कोटा कोचिंग कारखानों में पारिवारिक दबाव के कारण स्कूल के साथ कोचिंग क्लासेस से काफी उम्मीदों के साथ आई आई टी, पी एम टी की तैयारियों के लिए प्रवेश लेते हैं जबकि उनके अंदर का दबा पड़ा छोटू खेलने - कूदने की अपनी इच्छाओं के साथ गुलाटियाँ मारता रहता है पर उसको यह अवसर अब कभी नहीं मिलता और परीक्षा में पास ना होने पर तरह-तरह के क़दम ये उठा लेते हैं। यहाँ तक की आत्महत्या का ही रास्ता रह जाता हैं। आए दिन इस तरह की घटनाये हम सुनते और अखबारों में पढ़ते हैं। इन सभी घटनाओ को रोकने के लिए बच्चों के मन को जीवित रखना जरूरी हैं।
भावी भविष्य के होड़महोड़ में हम वही कर रहे होते हैं। जो हमें बार-बार कराया जाता रहा है। हर नयी ज़िंदगी के अंदर एक पुराने से भाई साहब की तरह हम केवल गुज़र रहे होते हैं बिना छोटू को सोचे और समझे क्योकि केवल इस रटंत प्रणाली से बच्चों के सोचने समझने की क्षमता पर असर पड़ रहा हैं। उनकी कल्पनाशीलता और रचनाशीलता को कुछ पारंपरिक तरीकों से बांधा जा रहा है। बच्चे, जिनको शिक्षक ने स्कूल मे बताया, सिखाया उससे अलग कुछ नहीं सोच पा रहे हैं और ना ही कुछ कर पा रहे हैं। शिक्षा जीवन से दूर होती जा रही है और जीवन समाज से दूर होता जा रहा है। यह संकट इस नाटक में शिक्षा व्यवस्था के बहाने एवं बड़े भाई साहब के ओढ़ी और पहनी गयी ज़िम्मेदारियों के बहाने हमारे सामने आ खड़ा होता है। यथार्थ के इस भयावह परिवेश में अपने अंदर के तमाम छोटू को वापस लाने की दिशा में एक आपसी संवाद की स्थापना करता है। यह नाटक मेरी ज़िंदगी का वह आईना है जो मुझे केवल इस यथार्थ से रूबरू ही नहीं करवाता बल्कि इस यथार्थ को बदलने के लिए एक प्रेरणा देता है। मेरे अंदर के छोटू को बाहर निकालता है एवं इस छोटू को खुले आसमां में अपने हस्त-पंख पसारे दौड़ने के लिए एक दिन फिर से गुदगुदाता है।
निर्देशक
मोहित वैष्णव
In Frame - Mohit Vaishnav
Video Shoot - Umesh Sahu
Team Community Theatre Tonk
मुंशी प्रेमचंद की कहानी बड़े भाई साहब में मैं उनके बचपन की कहानी का पाते हुए नाट्यनिर्माण प्रक्रिया को अंजाम दे रह हूँ। और इस कहानी से पूर्व, मध्य और पश्चात चरण में कुछ अंश एक सघन आनुभाविक एवं यथार्थ आशावादी विचारों के साथ संयुक्त कर रहा हूँ। जो बड़े भाई साहब की सम्पूर्ण कहानी की तरह ही एक और कहानी की पूर्णता का आभास कराती है। राजकुमार रजक के मार्गदर्शन में कहानी से परे जाकर और इसके साथ जुड़ कर इस प्रक्रिया में शामिल रंग - साथियों के साथ संवाद निर्माण किए हैं। एक तिहाई से अधिक आबादी आज भी अपने बच्चे के भविष्य की संकल्पना कर लेती है और इसकी एक पारंपरिक शृंखला के साथ बच्चे शिक्षा प्रणाली में प्रवेश करते है और पारिवारिक भावी संकल्पनाएँ धीरे-धीरे बच्चों की स्वयं की संकलपना में तब्दील हो जाती है। बच्चों को भी यह महसूस होने लगता है कि यही तो है मेरे भावी भविष्य की संकल्पना है।
बचपन की रूमानियत तो यहाँ बचपन में ही खत्म हो जाती है साथ ही आने वाली उम्र भी गुम हो जाते हैं और किसी तरह एक भविष्य हाथ लग जाता है। इस पूरी यात्रा में देखेंगे की उज्जवल और भावी भविष्य के साथ बड़े भाई साहब कंधों पर तो बैठे हैं परंतु छोटू कहीं मुझसे छूट गया है। कोटा कोचिंग जो कि देश का सबसे बड़ा कोचिंग कारख़ाना है को ही देखिये देश भर से विविध छात्र –छात्राएँ यहाँ कोचिंग के लिए आते हैं, ओढ़े हुए अपने भविष्य की संकल्पना को रूपायित करने के ख्याल से जिनके कंधो पर परिवार से भेजे गए बड़े भाई साहब हर वक़्त मौजूद रहते हैं। समूचे शिक्षा व्यवस्था में खेल भी केवल एक कक्षा बन कर रह ही रह गया है और छोटू का आनंद और खेल से इनका संबंध बिछुड़ गया है।“कोटा कोचिंग कारखानों में पारिवारिक दबाव के कारण स्कूल के साथ कोचिंग क्लासेस से काफी उम्मीदों के साथ आई आई टी, पी एम टी की तैयारियों के लिए प्रवेश लेते हैं जबकि उनके अंदर का दबा पड़ा छोटू खेलने - कूदने की अपनी इच्छाओं के साथ गुलाटियाँ मारता रहता है पर उसको यह अवसर अब कभी नहीं मिलता और परीक्षा में पास ना होने पर तरह-तरह के क़दम ये उठा लेते हैं। यहाँ तक की आत्महत्या का ही रास्ता रह जाता हैं। आए दिन इस तरह की घटनाये हम सुनते और अखबारों में पढ़ते हैं। इन सभी घटनाओ को रोकने के लिए बच्चों के मन को जीवित रखना जरूरी हैं।
भावी भविष्य के होड़महोड़ में हम वही कर रहे होते हैं। जो हमें बार-बार कराया जाता रहा है। हर नयी ज़िंदगी के अंदर एक पुराने से भाई साहब की तरह हम केवल गुज़र रहे होते हैं बिना छोटू को सोचे और समझे क्योकि केवल इस रटंत प्रणाली से बच्चों के सोचने समझने की क्षमता पर असर पड़ रहा हैं। उनकी कल्पनाशीलता और रचनाशीलता को कुछ पारंपरिक तरीकों से बांधा जा रहा है। बच्चे, जिनको शिक्षक ने स्कूल मे बताया, सिखाया उससे अलग कुछ नहीं सोच पा रहे हैं और ना ही कुछ कर पा रहे हैं। शिक्षा जीवन से दूर होती जा रही है और जीवन समाज से दूर होता जा रहा है। यह संकट इस नाटक में शिक्षा व्यवस्था के बहाने एवं बड़े भाई साहब के ओढ़ी और पहनी गयी ज़िम्मेदारियों के बहाने हमारे सामने आ खड़ा होता है। यथार्थ के इस भयावह परिवेश में अपने अंदर के तमाम छोटू को वापस लाने की दिशा में एक आपसी संवाद की स्थापना करता है। यह नाटक मेरी ज़िंदगी का वह आईना है जो मुझे केवल इस यथार्थ से रूबरू ही नहीं करवाता बल्कि इस यथार्थ को बदलने के लिए एक प्रेरणा देता है। मेरे अंदर के छोटू को बाहर निकालता है एवं इस छोटू को खुले आसमां में अपने हस्त-पंख पसारे दौड़ने के लिए एक दिन फिर से गुदगुदाता है।
निर्देशक
मोहित वैष्णव
In Frame - Mohit Vaishnav
Video Shoot - Umesh Sahu
Team Community Theatre Tonk