Chandi Paath - Chapter 1

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Chandi Paath by Swami Sarvagananda of Ramakrishna Math
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এই শ্রী শ্রী চন্ডীপাঠ যতই শুনি ততই ভীষণ ভালো লাগে,

RubyKonar
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খুব সুন্দর চন্ডিপাঠ🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
হর হর মহাদেব 🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️

dipaksaha
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JOY SHREE RADHA KRISHNA 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 JOY MAA DURGA 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

samirdas
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প্রভাতে পূজণীয় স্বামী সর্বগানন্দজী মহারাজের কন্ঠে চণ্ডী পাঠ শ্রবণে খুবই আনন্দ পাই। এছাড়া তাঁর গাওয়া ভক্তিমূলক সঙ্গীত ও স্তবগুলীও শুনতে ভীষণ ভাল লাগে। তাঁকে আমার প্রণাম।

tarunroy
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মাগো ভব ভয় হারিনি মা আমার তোমার রাঙা পাদপদমে অজস্র কোটি ভূমিষ্ঠ প্রণাম!! প্রণাম মহারাজ _ আপনার পবিত্র কন্ঠে পবিত্র পাঠ বিশ্ব ভুবন পবিত্র করে তুলেছে!

supritisarkar
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অনেক অনেক শক্তিশালী চণ্ডীপাঠ
More more powerful Chandi Path 🙏🙏

ujjalacharjee
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DONT KNOW WHY BUT I CAN NOT HOLD MY TEARS BACK WHILE LISTENING TO THIS, THANK YOU A LOT. MAY MAA BLESS EVERYONE.

SampritPal
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Jay maa mayamaya...🙏
Jay maa
Jay maa

soumilidas
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Music bhi bahut achha hai maa aap per kripa kare

baljindersharma
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jay maa durga
jay maa durga
jay maa durga

soumilidas
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Aami Maharajer ekanto bhakto. Roj e path na sunle aamar shanti hoyena. 2013 te prothom aami Dhaka Ramkrishna Math e onar naam bihin duto CD peyechilam . tokhon theke bhakto.Ekhon naam o porichoye peye mugdho. Maharajke pronam.

upasana-suswetabose
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So energetic and so powerful chanting.
Joy maa.Pronam
Very peaceful.
Pronam Maharaj

samiranmandal
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জয় মা, জয় মা চন্ডী প্রনাম গ্রহন করো। 🙏🌹🙏🌺🙏💐❤🏵

manjusrichakraborty
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Pujya Maharaj ji pranam nivedita kar rahi hu

ratnaawasthi
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Brahmakrita Devi Stuti starts from 12:49 and ends at 15:29

naamkunja
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ब्रवीति कथमुत्पन्ना सा कर्मास्याश्च* किं द्विज।
यत्प्रभावा* च सा देवी यत्स्वरूपा यदुद्भवा॥६१॥
तत्सर्वं श्रोतुमिच्छामि त्वत्तो ब्रह्मविदां वर॥६२॥
ऋषिरुवाच॥६३॥
नित्यैव सा जगन्मूर्तिस्तया सर्वमिदं ततम्॥६४॥
तथापि तत्समुत्पत्तिर्बहुधा श्रूयतां मम।
देवानां कार्यसिद्ध्यर्थमाविर्भवति सा यदा॥६५॥
उत्पन्नेति तदा लोके सा नित्याप्यभिधीयते।
योगनिद्रां यदा विष्णुर्जगत्येकार्णवीकृते॥६६॥
आस्तीर्य शेषमभजत्कल्पान्‍ते भगवान् प्रभुः।
तदा द्वावसुरौ घोरौ विख्यातौ मधुकैटभौ॥६७॥
विष्णुकर्णमलोद्भूतो हन्‍तुं ब्रह्माणमुद्यतौ।
स नाभिकमले विष्णोः स्थितो ब्रह्मा प्रजापतिः॥६८॥
दृष्ट्वा तावसुरौ चोग्रौ प्रसुप्तं च जनार्दनम्।
तुष्टाव योगनिद्रां तामेकाग्रहृदयस्थितः॥६९॥
विबोधनार्थाय हरेर्हरिनेत्रकृतालयाम्*।
विश्वेश्वरीं जगद्धात्रीं स्थितिसंहारकारिणीम्॥७०॥
निद्रां भगवतीं विष्णोरतुलां तेजसः प्रभुः॥७१॥
ब्रह्मोवाच॥७२॥
त्वं स्वाहा त्वं स्वधां त्वं हि वषट्कारःस्वरात्मिका॥७३॥
सुधा त्वमक्षरे नित्ये त्रिधा मात्रात्मिका स्थिता।
अर्धमात्रास्थिता नित्या यानुच्चार्या विशेषतः॥७४॥

त्वमेव संध्या* सावित्री त्वं देवि जननी परा।
त्वयैतद्धार्यते विश्वं त्वयैतत्सृज्यते जगत्॥७५॥
त्वयैतत्पाल्यते देवि त्वमत्स्यन्‍ते च सर्वदा।
विसृष्टौ सृष्टिरूपा त्वं स्थितिरूपा च पालने॥७६॥
तथा संहृतिरूपान्‍ते जगतोऽस्य जगन्मये।
महाविद्या महामाया महामेधा महास्मृतिः॥७७॥
महामोहा च भवती महादेवी महासुरी*।
प्रकृतिस्त्वं च सर्वस्य गुणत्रयविभाविनी॥७८॥
दारुणा।
त्वं श्रीस्त्वमीश्‍वरी त्वं ह्रीस्त्वं बुद्धिर्बोधलक्षणा॥७९॥
लज्जा पुष्टिस्तथा तुष्टिस्त्वं शान्तिः क्षान्तिरेव च।
खड्गिनी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी तथा॥८०॥
शङ्खिनी चापिनी बाणभुशुण्डीपरिघायुधा।
सौम्या
परापराणां परमा त्वमेव परमेश्‍वरी।
यच्च किंचित्क्वचिद्वस्तु सदसद्वाखिलात्मिके॥८२॥
तस्य सर्वस्य या शक्तिः सा त्वं किं स्तूयसे तदा*।
यया त्वया जगत्स्रष्टा जगत्पात्यत्ति* यो जगत्॥८३॥
सोऽपि निद्रावशं नीतः कस्त्वां स्तोतुमिहेश्‍वरः।
विष्णुः शरीरग्रहणमहमीशान एव च॥८४॥
कारितास्ते यतोऽतस्त्वां कः स्तोतुं शक्तिमान् भवेत्।
सा त्वमित्थं प्रभावैः स्वैरुदारैर्देवि संस्तुता॥८५॥
मोहयैतौ दुराधर्षावसुरौ मधुकैटभौ।
प्रबोधं च जगत्स्वामी नीयतामच्युतो लघु॥८६॥
बोधश्‍च क्रियतामस्य हन्‍तुमेतौ महासुरौ॥८७॥
ऋषिरुवाच॥८८॥
एवं स्तुता तदा देवी तामसी तत्र वेधसा॥८९॥
विष्णोः प्रबोधनार्थाय निहन्तुं मधुकैटभौ।

निर्गम्य दर्शने तस्थौ ब्रह्मणोऽव्यक्तजन्मनः।
उत्तस्थौ च जगन्नाथस्तया मुक्तो जनार्दनः॥९१॥
एकार्णवेऽहिशयनात्ततः स ददृशे च तौ।
मधुकैटभो
जनितोद्यमौ।
समुत्थाय ततस्ताभ्यां युयुधे भगवान् हरिः॥९३॥
पञ्चवर्षसहस्राणि बाहुप्रहरणो विभुः।
तावप्यतिबलोन्मत्तौ महामायाविमोहितौ॥९४॥
उक्तवन्तौ वरोऽस्मत्तो व्रियतामिति केशवम्॥९५॥
श्रीभगवानुवाच॥९६॥
भवेतामद्य मे तुष्टौ मम वध्यावुभावपि॥९७॥
किमन्येन वरेणात्र एतावद्धि वृतं मम*॥९८॥
ऋषिरुवाच॥९९॥
वञ्चिताभ्यामिति तदा सर्वमापोमयं जगत्॥१००॥
विलोक्य ताभ्यां गदितो भगवान् कमलेक्षणः*।
आवां जहि न यत्रोर्वी सलिलेन परिप्लुता॥१०१॥
ऋषिरुवाच॥१०२॥
तथेत्युक्त्वा भगवता शङ्खचक्रगदाभृता।
कृत्वा चक्रेण वै च्छिन्ने जघने शिरसी तयोः॥१०३॥
एवमेषा समुत्पन्ना ब्रह्मणा संस्तुता स्वयम्।
प्रभावमस्या देव्यास्तु भूयः श्रृणु वदामि ते॥ ऐं ॐ॥१०४॥

इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
मधुकैटभवधो नाम प्रथमोऽध्यायः॥१॥
उवाच १४, अर्धश्लोकाः २४, श्लोकाः ६६,
एवमादितः॥१०४॥

sushmitapaul
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Chandika path che book kut bhetal karan amhala maharaj ne sngitl ahe karayla pan te detail smjat nye

sudhapoul