'VEERBHADRA BHAGWAN SHIV KE VINASHAK ROOP' SHORT VIDEO

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आदेश गुरुदेव जी , जय महाकाल, जय महाकाली
दोस्तो मैं आज शिव जी का सबसे उग्र अवतार " वीरभद्र जी " का ऑयल पेंटिंग बना के आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं।
शिव जी का " वीरभद्र " अवतार
( एक हजार भुजा (हाथ), प्रलयाग्नि के समान ,ऊंचाई स्वर्ग तक ,विकराल दाढ़ें , अग्नि की ज्वालाओं की तरह जटाएं , गले में नरमुंडों की माला ,तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र वाले )

भगवान शिव के वीरभद्र अवतार का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। यह अवतार हमें संदेश देता है कि शक्ति का प्रयोग वहीं करें जहां उसका सदुपयोग हो। वीरों को दो वर्ग होते हैं- भद्र एवं अभद्र वीर। राम, अर्जुन और भीम वीर थे। रावण, दुर्योधन और कर्ण भी वीर थे, लेकिन पहला भद्र (सभ्य) वीर वर्ग है और दूसरा अभद्र (असभ्य) वीर वर्ग। सभ्य वीरों का काम होता है हमेशा धर्म के पथ पर चलना तथा नि:सहायों की सहायता करना। जबकि असभ्य वीर वर्ग सदैव अधर्म के मार्ग पर चलते हैं तथा नि:शक्तों को परेशान करते हैं। भद्र का अर्थ होता है कल्याणकारी। अत: वीरता के साथ भद्रता की अनिवार्यता इस अवतार से प्रतिपादित होती है।

कैसे हुआ वीरभद्रावतार

यह अवतार तब हुआ था जब ब्रह्मा के पुत्र दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन भगवान शिव को उसमें नहीं बुलाया, जबकि दक्ष की पुत्री सती का विवाह शिव से हुआ था। यज्ञ की बात पता होने पर सती ने भी शिव से वहां चलने को कहा, लेकिन शिव ने बिना आमंत्रण के जाने से मना कर दिया। फिर भी सती जिद कर अकेली ही वहां चली गई। अपने पिता के घर जब उन्होंने शिव का और स्वयं का अपमान अनुभव किया तो उन्होंने क्रोध में यज्ञवेदी में कूदकर अपनी देह त्याग दी। जब भगवान शिव को यह पता हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे क्रोध पूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्व भाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए।

शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है- क्रुद्ध: सुदष्टष्ठपुट: स धूर्जटिर्जटां तडिद्वह्लिसटोग्ररोचिषम्। उत्कृत्य रुद्र: सहसोत्थितो हसन् गम्भीरनादो विससर्ज तां भुवि॥ ततोऽतिकायस्तनुवा स्पृशन्दिवं। श्रीमद् भागवत
अर्थात : सती के प्राण त्यागने से दु:खी भगवान शिव ने उग्र रूप धारण कर क्रोध में अपने होंठ चबाते हुए अपनी एक जटा उखाड़ ली, जो बिजली और आग की लपट के समान दीप्त हो रही थी।
ऐसा रूप था वीरभद्र का भगवान शिव के वीरभद्र अवतार का वर्णन भागवत पुराण में किया गया है। उसके अनुसार देखने में वे प्रलयाग्नि के समान प्रतीत होते थे। उनका शरीर इतना ऊंचा था कि वह स्वर्ग को स्पर्श कर रहा था। वे एक हजार भुजाओं से युक्त थे। सूर्य के समान जलते हुए तीन नेत्र थे। विकराल दाढ़ें थीं और अग्नि की ज्वालाओं की तरह लाल-लाल जटाएं थीं। गले में नरमुंडों की माला तो हाथों में तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र थे।

वीरभद्र भगवान शिव के परम आज्ञाकारी थे। शिव ने उन्हें दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करने और विद्रोहियों के मर्दन यानि अहंकार का नाश करने की आज्ञा दी थी। हालांकि दक्ष को परास्त करना बहुत कठिन काम था, लेकिन वीरभद्र ने इस काम को भी कर दिखाया जबकि यज्ञ स्थल की रक्षा का काम स्वयं भगवान विष्णु कर रहे थे। वीरभद्र ने भगवान विष्णु जी से भी संग्राम किया। बहोत भयंकर युद्ध हुवा , अंत में भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाया पर वीर भद्र वो सुदर्शन चक्र भी निगल गए फिर भगवान विष्णु समजगए की ये महादेव के अलावा कोई और नहीं हो सकता फिर भगवान विष्णु ने कहा भगवान वीरभद्र अब आपको यहाँ कोई रोक नहीं सकता ..फिर वीर भद्र ने यज्ञ का विनाश करदिया ... ब्रह्मपुत्र दक्ष भी भय के मारे छिप गए थे। दक्ष ने योगबल से अपने सिर को अभेद्य बना लिया। तब वीरभद्र ने दक्ष की छाती पर पैर रख दोनों हाथों ने गर्दन मरोड़कर उसे शरीर से अलग कर अग्निकुंड में डाल दिया था।

Aadesh Gurudev ji, Jai Mahakal, Jai Mahakali
Friends, today I am presenting the most fierce avatar of Shiva in front of you by making oil painting of "Veerbhadra ji".
"Virabhadra" avatar of Shiva
(A thousand arms, like a pyre, height up to heaven, formidable beard, lit like flames of fire, garland of hornets around the neck, having various types of weapons)
How did Veerbhadravatar happen? ,
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This incarnation took place when Daksha, the son of Brahma, organized the yajna, but did not invite Lord Shiva, while Daksha's daughter Sati was married to Shiva. On knowing about the yagya, Sati also asked Shiva to go there, but Shiva refused to go without invitation. Still, Sati insisted and went there alone. When he felt the humiliation of Shiva and himself at his father's house, he jumped into the sacrificial altar in anger and abandoned his body. When Lord Shiva came to know about this, he in anger pulled a hair from his head and slammed it on top of the mountain in anger. From the east part of that Jata, the great Veerbhadra appeared.

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