filmov
tv
8 A.M. Metro - Gulzar's Poems | Narrated by Saiyami Kher and Saurabh| Gulshan Devaiah | Mark K Robin
Показать описание
Gulzar’s poems are a league of their own, and a treat for all listeners. Presenting 7 of his poems from the movie ‘8 A.M. Metro’, starring Gulshan Devaiah and Saiyami Kher. Narrated by Saiyami Kher and Saurabh Dixit, these poems form a part of the movie and are available to stream on all major streaming platforms.
#8AMMetro #Gulzar #SaiyamiKher
Track list:-
🎵 Ghoomti Hai 0:00
🎵 Khauf 0:22
🎵 Chup 0:44
🎵 Akele Toh Nahi Ho 0:57
🎵 Nazmein 1:32
🎵 Son Machchri 2:11
🎵 Pehli Dafaa 3:08
Poem 1: Ghoomti Hai
घूमती है ये ज़मीं जब तक
झूमती है महकी महकी सी हवा
बिन कहे कह देना, कुछ कहना है तो__
आँखों ही से थाम लेना
साथ साथ रहना है तो__
Poem 2: Khauf
दिमाग़ में बसा हुआ
कोई अन्धेरा है !
नाख़ुन निकल आते हैं उसके
गले में घोंप देता है__
कब आये ? न जाने कब ?
ये ख़ौफ़ रहता है !
******
Poem 3: Chup
हज़ार बातें थीं कहने को लेकिन
उनकी बेरुख़ी सुन के चुप हो गयी
******
Poem 4: Akele Toh Nahi Ho
तन्हाई में भी तुम अकेले तो नहीं हो
मुड़के देखो,
साथ साथ इक नज़्म चलती है
हाथ बढ़ाओ...
हाथ पकड़लो
घबराहट हो या कोई ख़ौफ़ की आहट हो तो
नज़्म की उँगली थाम के चलते रहना तुम !
पूरा चाँद निकल आये जब,
रुक के चाँद पे, लिख देना तुम !
**********
Poem 5: Nazmein
मेरा इक ख़्वाब था, नज़्में मेरी
उजाले देखें सुबह के__
मगर इस ज़िन्दगी की शाम में
ये जान कर__
जो नज़्में मेरी रग-व-जाँ में बहती थीं
तुम्हरी उँगलियों पर अब उतरने लग गई हैं
तस्सल्ली हो गई है
मैं जाते जाते क्या देता तुम्हें
सिवा अल्फ़ाज़ के
मगर इतनी सी ख़्वाहिश है,
कि मेरे बाद भी__
पिरोते रहना तुम अल्फ़ाज़ की लड़ियाँ__
तुम्हारी अपनी नज़्मों में !
*************
Poem 6: Son Machchri
जो ‘सोन मछरी का बदन लेकर
डूबी रहती इस झील की तह में
तुम चाँद की तरह आते
इस झील के पानी पर
और रौशनी कर देते
अन्धेरे मेरे घर में.
तुम तैरते और कहते:
इस झील की तन्हाई... और काश कोई होता ??
जो प्यार तुम्हें करता !
मैं आती किनारे तक, और दोस्ती कर लेती...
'सोन मछरी' तुम्हारी !
तन्हाई को भर देती
और तुमको सुकूँ मिलता.
तुम सोचते: काश इस झील में
'सोन मछरी' रहा करती!
*******
Poem 7: Pehli Dafaa
वो कोई ख़ौफ़ था,
या नाग था काला__
मुझे टख़नों से आ पकड़ा था जिसने__
मैं जब पहली दफ़ा तुमसे मिली थी
क़दम, गड़ने लगे थे मेरे ज़मीं में
तुम्हीं ने हाथ पकड़ा, और मुझे बाहर निकाला__
मुझे कन्धा दिया, सर टेकने को__
दिलासा पा के तुमसे,
साँस मेरी लौट आई__!
वो मेरे ख़ौफ़ सारे,
जिनके लम्बे नाख़ून
गले में चुभने लगे थे
तुम्हीं ने काट फेंके सारे फन उनके
मैं खुल के साँस लेने लग गई थी !
न माज़ी देखा__
न मुस्क़बिल की सोची__
वो दो हफ़ते तुम्हारे साथ जी कर,
अलग इक ज़िन्दगी जी ली__!
फ़क़त मैं थी__ फ़क़त तुम थे !
कुछ ऐसे रिश्ते भी होते हैं
जिनकी उम्र होती है न कोई नाम होता है
वो जीने के लिये कुछ लम्हे होते हैं।
Audio on Sony Music Entertainment India Pvt. Ltd (C) 2023
#8AMMetro #Gulzar #SaiyamiKher
Track list:-
🎵 Ghoomti Hai 0:00
🎵 Khauf 0:22
🎵 Chup 0:44
🎵 Akele Toh Nahi Ho 0:57
🎵 Nazmein 1:32
🎵 Son Machchri 2:11
🎵 Pehli Dafaa 3:08
Poem 1: Ghoomti Hai
घूमती है ये ज़मीं जब तक
झूमती है महकी महकी सी हवा
बिन कहे कह देना, कुछ कहना है तो__
आँखों ही से थाम लेना
साथ साथ रहना है तो__
Poem 2: Khauf
दिमाग़ में बसा हुआ
कोई अन्धेरा है !
नाख़ुन निकल आते हैं उसके
गले में घोंप देता है__
कब आये ? न जाने कब ?
ये ख़ौफ़ रहता है !
******
Poem 3: Chup
हज़ार बातें थीं कहने को लेकिन
उनकी बेरुख़ी सुन के चुप हो गयी
******
Poem 4: Akele Toh Nahi Ho
तन्हाई में भी तुम अकेले तो नहीं हो
मुड़के देखो,
साथ साथ इक नज़्म चलती है
हाथ बढ़ाओ...
हाथ पकड़लो
घबराहट हो या कोई ख़ौफ़ की आहट हो तो
नज़्म की उँगली थाम के चलते रहना तुम !
पूरा चाँद निकल आये जब,
रुक के चाँद पे, लिख देना तुम !
**********
Poem 5: Nazmein
मेरा इक ख़्वाब था, नज़्में मेरी
उजाले देखें सुबह के__
मगर इस ज़िन्दगी की शाम में
ये जान कर__
जो नज़्में मेरी रग-व-जाँ में बहती थीं
तुम्हरी उँगलियों पर अब उतरने लग गई हैं
तस्सल्ली हो गई है
मैं जाते जाते क्या देता तुम्हें
सिवा अल्फ़ाज़ के
मगर इतनी सी ख़्वाहिश है,
कि मेरे बाद भी__
पिरोते रहना तुम अल्फ़ाज़ की लड़ियाँ__
तुम्हारी अपनी नज़्मों में !
*************
Poem 6: Son Machchri
जो ‘सोन मछरी का बदन लेकर
डूबी रहती इस झील की तह में
तुम चाँद की तरह आते
इस झील के पानी पर
और रौशनी कर देते
अन्धेरे मेरे घर में.
तुम तैरते और कहते:
इस झील की तन्हाई... और काश कोई होता ??
जो प्यार तुम्हें करता !
मैं आती किनारे तक, और दोस्ती कर लेती...
'सोन मछरी' तुम्हारी !
तन्हाई को भर देती
और तुमको सुकूँ मिलता.
तुम सोचते: काश इस झील में
'सोन मछरी' रहा करती!
*******
Poem 7: Pehli Dafaa
वो कोई ख़ौफ़ था,
या नाग था काला__
मुझे टख़नों से आ पकड़ा था जिसने__
मैं जब पहली दफ़ा तुमसे मिली थी
क़दम, गड़ने लगे थे मेरे ज़मीं में
तुम्हीं ने हाथ पकड़ा, और मुझे बाहर निकाला__
मुझे कन्धा दिया, सर टेकने को__
दिलासा पा के तुमसे,
साँस मेरी लौट आई__!
वो मेरे ख़ौफ़ सारे,
जिनके लम्बे नाख़ून
गले में चुभने लगे थे
तुम्हीं ने काट फेंके सारे फन उनके
मैं खुल के साँस लेने लग गई थी !
न माज़ी देखा__
न मुस्क़बिल की सोची__
वो दो हफ़ते तुम्हारे साथ जी कर,
अलग इक ज़िन्दगी जी ली__!
फ़क़त मैं थी__ फ़क़त तुम थे !
कुछ ऐसे रिश्ते भी होते हैं
जिनकी उम्र होती है न कोई नाम होता है
वो जीने के लिये कुछ लम्हे होते हैं।
Audio on Sony Music Entertainment India Pvt. Ltd (C) 2023
Комментарии