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Today Panchang 14 November 2019 ( Aaj Ka Panchang )

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Today Panchang 14 November 2019 ( Aaj Ka Panchang )
पंचांग या पञ्चाङ्गम् संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका शब्दशः मतलब है पांच अंगों से युक्त वस्तु। इसलिए, पंचांग इन 5 अनिवार्य अंगों से मिलकर बनता है - तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इसके अलावा हिन्दू कैलेंडर के माध्यम से लोगों को पक्ष, ऋतु एवं माह का भी पता चलता है। हिन्दी पंचांग के अनुसार एक वर्ष में 12 माह होते हैं और एक माह में दो पक्ष (शुक्ल और कृष्ण पक्ष) होते हैं। जबकि एक पक्ष में 15 तिथियाँ होती हैं। वहीं वैदिक पंचांग में माह और ऋतुओं के नाम अंग्रेज़ी कैलेंडर से भिन्न होते हैं।
तिथि - तिथि को बोलचाल की भाषा में तारीख़ या फिर दिनांक कहते हैं। लेकिन तकनीकी रूप से यह डेट से भिन्न है। क्योंकि हिन्दू पंचांग में एक तिथि 19 से लेकर 24 घंटे तक हो सकती है। लेकिन अंग्रेज़ी तारीखें 24 घंटे के बाद परिवर्तित हो जाती है। कई बार एक दिन में दो तिथियाँ भी होती हैं। परंतु इसमें सूर्योदय की तिथि को मुख्य तिथि माना जाता है। तिथियों के नाम - प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्थदशी। शुक्ल पक्ष में पंचदशी तिथि को पूर्णिमा कहते हैं जबकि कृष्ण पक्ष में पंद्रवी तिथि को अमावस्या के नाम से जाना जाता है।
वार - वैदिक ज्योतिष के अनुसार एक सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक के समयावधि को एक वार कहा जाता है। बोलचाल की भाषा में वार को दिन भी कहते हैं। एक सप्ताह में सात वार होते हैं। सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार।
योग - हिन्दू ज्योतिष के अनुसार सूर्य एवं चंद्रमा के संयोग से योग का निर्माण होता है। तकनीकी भाषा में यदि इसे समझा जाए तो सूर्य और चंद्रमा के भोगांश को जोड़कर 13 अंश 20 मिनट से भाग देने पर एक योग की अवधि प्राप्त होती है। योग का शाब्दिक अर्थ ही दो चीज़ों को जोड़ना होता है। योग 27 प्रकार के होते हैं। 1. विष्कुम्भ, 2. प्रीति, 3. आयुष्मान, 4. सौभाग्य, 5. शोभन, 6. अतिगण्ड, 7. सुकर्मा, 8. धृति, 9. शूल, 10. गण्ड, 11. वृद्धि, 12. ध्रुव, 13. व्याघात, 14. हर्षण, 15. वज्र, 16. सिद्धि, 17. व्यातीपात, 18. वरीयान, 19. परिघ, 20. शिव, 21. सिद्ध, 22. साध्य, 23. शुभ, 24. शुक्ल, 25. ब्रह्म, 26. इन्द्र, 27. वैधृति।
नक्षत्र - आसमान में तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। वैदिक ज्योतिष में नक्षत्र को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्र होते हैं। 27 नक्षत्रों के नाम इस प्रकार हैं- 1. अश्विनी, 2. भरणी, 3. कृतिका, 4. रोहिणी, 4. मृगशिरा, 6. आर्द्रा, 7. पुनर्वसु, 8. पुष्य, 9. अश्लेषा, 10. मघा, 11. पूर्वा फाल्गुनी, 12. उत्तरा फाल्गुनी, 13. हस्त, 14. चित्रा, 15. स्वाती, 16. विशाखा, 17. अनुराधा, 18. ज्येष्ठा, 19. मूल, 20. पूर्वाषाढ़ा, 21. उत्तराषाढा, 22. श्रवण, 23. धनिष्ठा, 24. शतभिषा, 25. पूर्वाभाद्रपद, 26. उत्तरभाद्रपद, 27. रेवती।
करण - तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं अर्थात एक माह में कुल 60 करण होते हैं। करण को दो भागों में विभाजित किया गया है - चर और स्थिर करण।
चर करण के नाम इस प्रकार हैं - बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज्य, विष्टी।
स्थिर करण के नाम इस प्रकार है - शकुनि, चतुष्पाद, नाग, किंस्तुघ्न।
पंचांग या पञ्चाङ्गम् संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका शब्दशः मतलब है पांच अंगों से युक्त वस्तु। इसलिए, पंचांग इन 5 अनिवार्य अंगों से मिलकर बनता है - तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इसके अलावा हिन्दू कैलेंडर के माध्यम से लोगों को पक्ष, ऋतु एवं माह का भी पता चलता है। हिन्दी पंचांग के अनुसार एक वर्ष में 12 माह होते हैं और एक माह में दो पक्ष (शुक्ल और कृष्ण पक्ष) होते हैं। जबकि एक पक्ष में 15 तिथियाँ होती हैं। वहीं वैदिक पंचांग में माह और ऋतुओं के नाम अंग्रेज़ी कैलेंडर से भिन्न होते हैं।
तिथि - तिथि को बोलचाल की भाषा में तारीख़ या फिर दिनांक कहते हैं। लेकिन तकनीकी रूप से यह डेट से भिन्न है। क्योंकि हिन्दू पंचांग में एक तिथि 19 से लेकर 24 घंटे तक हो सकती है। लेकिन अंग्रेज़ी तारीखें 24 घंटे के बाद परिवर्तित हो जाती है। कई बार एक दिन में दो तिथियाँ भी होती हैं। परंतु इसमें सूर्योदय की तिथि को मुख्य तिथि माना जाता है। तिथियों के नाम - प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्थदशी। शुक्ल पक्ष में पंचदशी तिथि को पूर्णिमा कहते हैं जबकि कृष्ण पक्ष में पंद्रवी तिथि को अमावस्या के नाम से जाना जाता है।
वार - वैदिक ज्योतिष के अनुसार एक सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक के समयावधि को एक वार कहा जाता है। बोलचाल की भाषा में वार को दिन भी कहते हैं। एक सप्ताह में सात वार होते हैं। सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार।
योग - हिन्दू ज्योतिष के अनुसार सूर्य एवं चंद्रमा के संयोग से योग का निर्माण होता है। तकनीकी भाषा में यदि इसे समझा जाए तो सूर्य और चंद्रमा के भोगांश को जोड़कर 13 अंश 20 मिनट से भाग देने पर एक योग की अवधि प्राप्त होती है। योग का शाब्दिक अर्थ ही दो चीज़ों को जोड़ना होता है। योग 27 प्रकार के होते हैं। 1. विष्कुम्भ, 2. प्रीति, 3. आयुष्मान, 4. सौभाग्य, 5. शोभन, 6. अतिगण्ड, 7. सुकर्मा, 8. धृति, 9. शूल, 10. गण्ड, 11. वृद्धि, 12. ध्रुव, 13. व्याघात, 14. हर्षण, 15. वज्र, 16. सिद्धि, 17. व्यातीपात, 18. वरीयान, 19. परिघ, 20. शिव, 21. सिद्ध, 22. साध्य, 23. शुभ, 24. शुक्ल, 25. ब्रह्म, 26. इन्द्र, 27. वैधृति।
नक्षत्र - आसमान में तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। वैदिक ज्योतिष में नक्षत्र को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्र होते हैं। 27 नक्षत्रों के नाम इस प्रकार हैं- 1. अश्विनी, 2. भरणी, 3. कृतिका, 4. रोहिणी, 4. मृगशिरा, 6. आर्द्रा, 7. पुनर्वसु, 8. पुष्य, 9. अश्लेषा, 10. मघा, 11. पूर्वा फाल्गुनी, 12. उत्तरा फाल्गुनी, 13. हस्त, 14. चित्रा, 15. स्वाती, 16. विशाखा, 17. अनुराधा, 18. ज्येष्ठा, 19. मूल, 20. पूर्वाषाढ़ा, 21. उत्तराषाढा, 22. श्रवण, 23. धनिष्ठा, 24. शतभिषा, 25. पूर्वाभाद्रपद, 26. उत्तरभाद्रपद, 27. रेवती।
करण - तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं अर्थात एक माह में कुल 60 करण होते हैं। करण को दो भागों में विभाजित किया गया है - चर और स्थिर करण।
चर करण के नाम इस प्रकार हैं - बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज्य, विष्टी।
स्थिर करण के नाम इस प्रकार है - शकुनि, चतुष्पाद, नाग, किंस्तुघ्न।