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Waadiyan Mera Daaman-Lata-Karaoke
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Song : Waadiyaan Mera Daaman
Film : Abhilasha (1968)
Music : R D Burman
Lyrics : Majrooh Sultanpuri
Singer : Lata Mangeshkar
“अभिलाषा” (1968) भले ही उस दौर की एक आम Melodramatic फिल्म हो मगर सशक्त गीत संगीत और मीना कुमारी, रहमान, नंदा, काशीनाथ घाणेकर और हैंडसम संजय खान जैसे सशक्त कलाकारों और मधुर गीत संगीत की बदौलत फिल्म ने कामयाबी हासिल की. फिल्म के गीत लिखे थे जनाब मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने और उन्हें संगीत बद्ध किया था RD बर्मन (उस वक़्त उभरता सितारा) उर्फ़ पंचम दा ने.
लता मंगेशकर जी द्वारा गाया प्रस्तुत गीत “वादियाँ मेरा दामन, रास्ते मेरी बाहें ...” रफ़ी साहब के गाये गीत का ही Female Version है. कौन सा version बेहतर है या किसने बेहतर गाया है ये चर्चा मेरे विचार से फ़िज़ूल है. लता जी और रफ़ी साहब दोनों की श्रेष्ठता विश्व में सिद्ध हो चुकी है. परन्तु ये भी सच्चाई है कि इनमे से रफ़ी साहब का version ज्यादा लोकप्रिय हुआ, जैसे की रफ़ी जी और लता जी के दो versions में अक्सर होता है. मेरे ख़याल से शायद ऐसा इसलिए होता है हमारी फिल्में अधिकतर पुरुष प्रधान होती हैं और male version वाला गीत ज़्यादातर पहले पेश होता है जो एक माहौल या मापदंड (yardstick) सेट कर देता है. फीमेल version अक्सर एक प्रतिक्रिया (Reaction) ..अक्सर Sad Reaction... के रूप में पेश किया जाता है. सबसे अच्छा उदहारण है “बरसात की रात” (1960) के शीर्षक गीत “ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी...” के दो version. मेरे ख़याल से कोई वजह नहीं कि भारत भूषण जी के भाव विहीन गायकी के आगे मधुबाला जी का दमदार अभिनय के साथ पेश किया हुआ फीमेल version फ़ीका पड़ जाए..
दूसरी वजह ये भी है कि दो version में जो sound ट्रैक बनता है वो 99 % Male version पर आधारित होता है, और Female singer को खुद को उस track के हिसाब से adjust करना पड़ता है.
ख़ैर, इस विषय को विराम देते हैं और आप लता जी के इस बेहतरीन गीत के ट्रैक का आनंद उठाईए.
Film : Abhilasha (1968)
Music : R D Burman
Lyrics : Majrooh Sultanpuri
Singer : Lata Mangeshkar
“अभिलाषा” (1968) भले ही उस दौर की एक आम Melodramatic फिल्म हो मगर सशक्त गीत संगीत और मीना कुमारी, रहमान, नंदा, काशीनाथ घाणेकर और हैंडसम संजय खान जैसे सशक्त कलाकारों और मधुर गीत संगीत की बदौलत फिल्म ने कामयाबी हासिल की. फिल्म के गीत लिखे थे जनाब मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने और उन्हें संगीत बद्ध किया था RD बर्मन (उस वक़्त उभरता सितारा) उर्फ़ पंचम दा ने.
लता मंगेशकर जी द्वारा गाया प्रस्तुत गीत “वादियाँ मेरा दामन, रास्ते मेरी बाहें ...” रफ़ी साहब के गाये गीत का ही Female Version है. कौन सा version बेहतर है या किसने बेहतर गाया है ये चर्चा मेरे विचार से फ़िज़ूल है. लता जी और रफ़ी साहब दोनों की श्रेष्ठता विश्व में सिद्ध हो चुकी है. परन्तु ये भी सच्चाई है कि इनमे से रफ़ी साहब का version ज्यादा लोकप्रिय हुआ, जैसे की रफ़ी जी और लता जी के दो versions में अक्सर होता है. मेरे ख़याल से शायद ऐसा इसलिए होता है हमारी फिल्में अधिकतर पुरुष प्रधान होती हैं और male version वाला गीत ज़्यादातर पहले पेश होता है जो एक माहौल या मापदंड (yardstick) सेट कर देता है. फीमेल version अक्सर एक प्रतिक्रिया (Reaction) ..अक्सर Sad Reaction... के रूप में पेश किया जाता है. सबसे अच्छा उदहारण है “बरसात की रात” (1960) के शीर्षक गीत “ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी...” के दो version. मेरे ख़याल से कोई वजह नहीं कि भारत भूषण जी के भाव विहीन गायकी के आगे मधुबाला जी का दमदार अभिनय के साथ पेश किया हुआ फीमेल version फ़ीका पड़ जाए..
दूसरी वजह ये भी है कि दो version में जो sound ट्रैक बनता है वो 99 % Male version पर आधारित होता है, और Female singer को खुद को उस track के हिसाब से adjust करना पड़ता है.
ख़ैर, इस विषय को विराम देते हैं और आप लता जी के इस बेहतरीन गीत के ट्रैक का आनंद उठाईए.
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